Loading...

लेखक- आंजेलो फानेल्ली

चित्र- चेचिलिया ओरसोनी 

इतालवी से अनुवाद- मेघना पालीशकर 

“इटली की सच्ची परीकथा” … ‘उड़ती चारपाई’ किताब का यह उप- शीर्षक सहसा ही पाठक का ध्यान आकर्षित करता है। साथ ही मन एक संदेह से भर जाता है कि क्या परिकथाएं भी सच्ची हुआ करती हैं? क्या परियाँ सच में होती हैं? विश्वास करना जरा कठिन सा लगता है। बचपन में परीकथाएं पढ़ते हुए यह सवाल बार-बार मन में आता रहा कि परियाँ आखिर कहाँ से आती होंगी? कैसा होगा परियों का देश? क्या यह हमारी कोरी कल्पनाएँ तो नहीं। इसकी वजह भी स्पष्ट है क्योंकि हमारे कल्पनालोक में परीकथाओं की जो छाप है वह हमारी अपनी दुनिया या समाज से तो कम ही मिलती है। या हम उसे उस दृष्टिकोण से देख नहीं पाते। नंदन पत्रिका के मई 2020 अंक के संपादकीय में जयंती रंगनाथन लिखती हैं कि – “मुझे तो लगता है कि परियाँ होती हैं। परियों को होना चाहिए। परियाँ हमारी दुनिया खूबसूरत बनाती हैं। हमें जिंदगी की उम्मीद देती हैं, प्रकृति की सुंदरता से मिलाती हैं, आशा की रोशनी जगमगाती हैं। बचपन में जब मैं अपनी अम्मा से सवाल करती थी कि कहाँ होती हैं परियाँ? तो वह कहती थीं, “तुम्हारे अंदर। तुम्हारी अच्छाई ही तुम्हें एंजल बनाती है।”

 

वैसे हम सभी को परियों की दुनिया अच्छी लगती हैं। विशेषकर तब जब हम बुरे दौर से गुजर रहे होते हैं और खुद को कठिन समय में फंसा हुआ महसूस करते हैं। जब हमें लगता है कि भविष्य अंधकारमय हो गया है… अंतहीन। कहीं कोई रास्ता नहीं सूझता। ऐसे समय में कल्पनाएं अहम भूमिका निभाती है। जो हमें किसी रास्ते पर ले चलती हैं। ताकि अंधेरा छंट जाए और कठिन समय गुजर जाए।

उड़ती चारपाई अँधेरों के बीच ऐसी ही सकारात्मकता और रोशनी के तलाश की कहानी है। यह कोई सुप्रसिद्ध परिकथा तो नहीं… न ही इसकी दशा अज्ञात या गुमनाम परिकथाओं जैसी है, जिन्हें अदद पाठकों की तलाश हमेशा रहती है। परंतु इसकी शुरुआत सुप्रसिद्ध परिकथाओं के जैसी ही है। मसलन – “कई साल पहले…, वित्तोरियो नाम का एक बूढ़ा आदमी रहता था। बौना सा, पतला सा, मुँह में एक भी दाँत नहीं।

वित्तोरियो इस कहानी का मुख्य पात्र है जो कि इटली के गाँव में रहता है। वह ‘बेचारा बूढ़ा’ तो मगर नहीं ‘पगला बूढ़ा’ जरूर था। लेकिन उसकी इच्छा बूढ़ा बनने की तो बिलकुल ही नहीं थी। ‘पागल’ उसे गाँव के लोग कहते थे। उसकी अजीबोगरीब बातें और आविष्कारों की वजह से। वह खुद को वैज्ञानिक भी नहीं मानता था। यह सच था कि वह अभावों में रह रहा था। लेकिन उसका घर अजीब, अनोखी, निराली, विचित्र, रहस्यमयी और थोड़ी सी डरावनी चीजों से भरा था।

वित्तोरियो के चरित्र का बहुत बारीकी से और सूक्ष्म चित्रण इस किताब में मिलता है। जो कि सहज भाषा और सुंदर चित्रों के माध्यम से संभव हो पाया है।

जीवन में ऐसे कई समय आते हैं जब कोई अपने आप को नितांत अकेला, लाचार और बोरियत से घिरा पाता है। जिससे निकलने या उबरने की राह बहुत कठिन तो नहीं, लेकिन आसान भी नहीं लगती। ऐसे पलों में खुद को सकारात्मक बनाए रखना कठिन चुनौती ही तो होती है। वित्तोरियो की ऐसे ही कठिन समय से निकलने के तरीकों को इस किताब में कहानी के माध्यम से बताया गया। अपनी लंबी बीमारी के दिनों में वह सोचता रहा कि बीमारी से कैसे राहत मिल सकती है। तभी उसे उड़ती चारपाई का ख़्याल आता है और वह उसे साकार भी करता है। इस कहानी के अंत में जाते-जाते यह महसूस होता है कि वित्तोरियो का जीवन और उसकी यह घटना कालातीत है।

किताब के अंत में लेखक आंजेलो फानेल्ली ने ‘लेखक की ओर से’ में लिखा है कि वित्तोरियो की चारपाई उनकी संस्था ‘लिबेरो पेन्सातोरे’ में रखी है। यहाँ तक आते-आते पाठक ‘सच्ची परिकथा’ के मर्म को समझ जाता है। इस प्रकार बाल साहित्य में हाल में प्रकाशित किताबों के बीच ‘उड़ती चारपाई’ एक अलग मुकाम पर खड़ी हो जाती है।

पेंसिल कलर से बने रंगीन इलस्ट्रेशन इस कहानी को सजीव बनाते हैं। किताब के हर फ्रेम में कहानी का भाव पक्ष अवश्य ही उभरा है। इन चित्रों के साथ दो छायाचित्र भी प्रयोग में लाए गए हैं। एक फोटो में वित्तोरियो अपनी इंजन वाली चारपाई के साथ बाजार में निकला है। दूसरे में उसका श्वेत-श्याम मुस्कुराता हुआ चित्र है। एकलव्य द्वारा प्रकाशित इस किताब की छपाई सुंदर है। अनुवाद भी सरस हैं।

हमारे जीवन में ऐसी कई घटनाएँ घटित होती हैं, जो हमें मुश्किलों से निकाल ले जाती हैं। भले ही हम उन्हें परीकथाएं नहीं कहते। यह किताब ऐसी ही छोटी-बड़ी बातों को याद करने और उनके प्रति विश्वास और सम्मान बनाए के लिए भी प्रेरित करती है।

Sharing the LEC experience

It has been a week since I am back from LEC and I have thought to share a chunk of my experience I have gathered in my first contact. Before going into the course…

Niju Mohan Parag Nurtures 2 May 2018

When Learning is Handcrafted…

I saw Ludwig Mies van der Rohe’s aphorism ‘God is in the detail’ come alive as I walked into the LEC 2018 classroom in the St Joseph Vaz Spiritual Centre in Goa…

Niju Mohan Library Educator's Course 1 May 2018